शनिवार, 19 जनवरी 2013

गरजे बदरा

गरजे बदरा
बरसा पानी
महकी मिट्टी
चहकी चिड़िया
भीगे पत्ते
भीगा  आँगन
नाचा मोर
खिला  वसंत ............
गरजे बदरा
सहमी मुनिया
टपका पानी
भीगा बिस्तर 
भीगी गुड़िया
बोली मुनिया
अब न आना 
प्यारे बदरा
डर लगता है ............


 

10 टिप्‍पणियां:

Madan Mohan Saxena ने कहा…

सुन्दर कबिता। बधाई .

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Oh..... Marmik..

Amrita Tanmay ने कहा…

सुन्दर रचना..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बदरा के दो अलग अलग रूप दिखाती रचना ...

Unknown ने कहा…

waaaaaah!!!!!!!!!!!

Unknown ने कहा…

waaaaah!!!!!!!

Saras ने कहा…

एक ही तस्वीर के दो पहलू......अद्भुत !!!!

Saras ने कहा…

एक ही तस्वीर के दो पहलू......अद्भुत !!!!

Unknown ने कहा…

waah bhi aah bhi ...

मेरी नयी रचना Os ki boond: लव लैटर ...

Unknown ने कहा…

Ati sunder