जीवन में हमें संतुष्टि कभी मिलती है?
हम सभी मोह-माया के संजाल में ऐसे जकड़े हुए हैं, की उससे बाहर निकल ही नहीं पाते। एक तृप्ति पूर्ण होते ही दूसरी अभिलाषा जोर मारने लगती है। अपनी इच्छाओं के वशीभूत हम इंसान सिर्फ कठपुतली की तरह हिचकोले खाते हुए एक दिन इस दुनिया से अपनी कई अधूरी ख्वाहिशों के साथ विदा हो जाते हैं। ये इच्छाएं और हमारी विषय-कामना ये सब उस शेर की तरह हैं, जिस पर यदि हम सवार होकर उसे नियंत्रित न करें तो समय से पहले ही हमारी इहलीला की इतिश्री निश्चित है। प्रतिपल द्वेष, लालच, ईर्ष्या और क्रोधाग्नि हमारे शरीर को रोगों का घर बनाने के लिए ईंट-गारे का काम करते हैं और उस पर, जो हमारे पास है, उसके प्रति असंतुष्टि का भाव हमारे मस्तिष्क को ठोकता-पीटता रहता है, जिस कारण हम तन के साथ ही मन से भी निरोगी नहीं रह पाते और रोगी व्यक्ति दीर्घायु कैसे हो सकता है?अपनी इच्छाओं - अभिलाषाओं का दमन न कर हम खुद इनके द्वारा कुचले जाते रहते हैं और हमे इसका एहसास तब तक नहीं होता जब तक की हम स्वयं अनिष्ट को अपनी तरफ आता नही देखते...........आश्चर्य तो तब होता है जब इन सब बातों से भिज्ञ और भद्र व्यक्ति भी मौके-बे-मौके विचारोत्तेजित हो जाता है, स्वयं से नियंत्रण खो बैठता है और वही व्यवहार कर डालता है जो वांछित के प्रतिकूल हो! तो कैसे एक सामान्य व्यक्ति खुद को पूर्ण आयु के साथ सुखी जीवन जिलाए?
अपने बचपन के दिनों से ही मैंने अपने आसपास के समाज में सदा तनाव का वातावरण पाया, उसका मेरे मन-मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव रहा, किन्तु मेरे पारिवारिक माहौल ने मुझमे सामाजिकता का बीज बोया था, और उस बीज ने मेरी बढती वय के साथ - साथ थोडा-बहुत आकार ग्रहण किया जिसकी छाया से आज मै कई तरह के कष्टों की धूप से बच पाती हूँ लेकिन क्रोध-द्वेष-लालच के पंजों से मैं खुद को सदैव बचा पाऊं, इतनी गुण संपन्न मै कभी न हो सकी। किन्तु जैसा मैंने ऊपर कहा की हम तब तक नहीं चेतते जब तक अनिष्ट को अपने निकट आते नहीं देखते, इसलिए आज जब मै यह महसूस करने लगी हूँ, की मेरा शरीर मेरी आयु से अधिक बूढा हो गया है, मैने खुद को समेटने की कोशिश शुरू कर दी है. कितनी सफल हो पाउंगी यह तो मेरी दृढ़ता पर निर्भर रहेगा, किन्तु मैं समझती हूँ की अच्छे साहित्य का अध्ययन और अंतर्मनन ये दोनों ही क्रियाएं (योग जो सर्वोत्तम है, को अपने जीवन का हिस्सा बनाना मुझे कभी आ सकेगा इस पर मुझे संशय है) मेरे इस निश्चय में मेरे लिए सहायक सिद्ध होंगी.
आमीन!