बुधवार, 10 अप्रैल 2013

ऐ मेरे मन


ऐ मेरे मन
तुम्हे ऐतराज तो होगा
जो मैं कहूँ कि
तुम मेरे लायक नहीं या मैं तुम्हारे
कि तुम मैले, कलुषित और भौंडे हो चले हो
तुम रचते हो साजिश मेरे प्रेम के ख़िलाफ़
जब टूटते हैं मिथक
तो मनाने लगते हो मुझे
और मान ही जाती हूँ मैं
कि मन आखिर मेरा ही तो है
मगर तुम मेरे कहाँ हो, मन ?
होते तो, मुझे अन्तर्द्वन्द की भेंट न चढाते
मैं तुम्हारे अधीन जब-तब हो जाती हूँ
तुम हो कि मेरे वश में कभी नहीं आते
तुम मेरे भीतर कहीं हो, जो बरगलाते हो मुझे
मगर तुम्हारे भीतर कौन है
जो बोता  है तुममे अविश्वास , धोखे और घृणा के बीज
आज साफ़ करो सारी  बातें
या छोड़ दो मेरा पीछा और करने दो मुझे
दो बातें अपने प्रियतम से!

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

फिर से ………!

माँ मुझे ढूंढ़ रही है पागलों की तरह
वो नहीं  जानती पिछली रात
मै गहरी नींद में थी जब
मुझे सहलाते हुए उसे नींद ने कब जकड़ा
वो भी न जान सकी
मुझे माँ से छुड़ाकर
उठा ले गया था वही
जो मुझे ढूंढने वालों की  जमात में
सबसे आगे है
एक अनजान अँधेरे कमरे के कोने में उसने मुझे पटका
मेरी आँख खुली
मै काँप रही थी-चिल्ला रही थी
उसके दांत मेरी  रूह को चबा रहे थे
मेरी तकलीफ से वो आह्लादित हो उठा था
फिर खुद को तृप्त कर
मुझे ख़त्म कर दिया उसने
कि कहीं मै उसके गुनाह का पर्दाफाश न कर दूँ
और इस तरह
डेढ़ बरस का 'स्त्रीत्व'
मिट्टी की तहों में
जज़्ब हो गया फिर से ………!




शनिवार, 19 जनवरी 2013

गरजे बदरा

गरजे बदरा
बरसा पानी
महकी मिट्टी
चहकी चिड़िया
भीगे पत्ते
भीगा  आँगन
नाचा मोर
खिला  वसंत ............
गरजे बदरा
सहमी मुनिया
टपका पानी
भीगा बिस्तर 
भीगी गुड़िया
बोली मुनिया
अब न आना 
प्यारे बदरा
डर लगता है ............