बुधवार, 21 मार्च 2012

नया सवेरा

सांध्यकालीन स्वर्णिम छटा में शीतल बयार तन के साथ ही मन को भी ठंडक दे रही है। अलकनंदा की कल-कल की चिड़ियों के कलरव के साथ संगीतमय प्रतिस्पर्धा चल रही है। पहाड़ों का नीलापन आसमान की नीलिमा के साथ प्रेमोत्सव मना रहा है। सीढ़ीदार खेत एक दूसरे को सहारा देकर ऊपर उठा रहे हैं। हरे भरे देवदार और बांज बुरांस के लाल फूलों को ललचाई नज़रों से देख रहे हैं और बुरांस अपनी ही मादक सुगंध में मदहोश हुआ जा रहा है.
आह! प्रकृति का ये अप्रतिम सौन्दर्य!
सर्पीली पगडंडियों से गुजरते हुए कल्पनाओं के भवसागर में तरता उतरता रामेश्वर इस नैसर्गिक सौन्दर्य पर मुग्ध हुआ जा रहा था, उसे यहाँ के कंकड़-पत्थरों में भी खूबसूरत नक्काशी दिखाई दे रही थी, नौले - खोलों के मीठे पानी ने उसे आकंठ तृप्ति से भर डाला था। उसके ह्रदय से कवितायेँ फूट रही थी.
इतनी रयिसियत के बावजूद भी यहाँ जवानियाँ लगभग गायब हैं, इंसानों के नाम पर सिर्फ कुछ बूढ़ी ज़िंदगियाँ कसमसाती साँसे ले रही हैं।
इंसान ही न रहे तो प्रकृति के इन उपहारों का आनंद कौन उठाये?
बिन बच्चों के आँगन जैसा सूनापन है इन पहाड़ों में और ये जंक लगी कुण्डियाँ, टूटे-जर्ज़र दर-ओ-दीवार, उदास तिबारियां सब मिलकर गवाही दे रहे हैं, कभी ये भी इतराया करते थे। बंजर पड़ गए खेतों में कभी हाड़-तोड़ मेहनत ज़रूर हुई है। ये सब लावारिस हाल में देखकर उसका जी फटा जा रहा था। वो उजड़े वीरान एक-एक दरवाज़े खिड़की से लिपट कर रोना चाहता था, हरेक आँगन को छू कर बता देना चाहता था कि अब तुम अकेले नहीं हो मैं लौट आया हूँ।
हमेशा हमेशा के लिए!

18 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर , हृदयस्पर्शी पोस्ट .....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर रचना,बेहतरीन भाव प्रस्तुति,....

MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक पोस्ट, आभार.

Nityanand Gayen ने कहा…

हृदयस्पर्शी

Sunitamohan ने कहा…

Monika G, Dheerendra G, Shukla G aur Gayen G, aap sabhi ko bahut bahut dhanyvaad.....isi tarah utsaahvardhan karte rahenge, aisi aasha karti hun.........

Unknown ने कहा…

बेहतरीन.....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर............

दिल को कहीं गहरे छू गयी आपकी नन्ही सी रचना....

अनु .

virendra sharma ने कहा…

प्रकृति नटी का सौन्दर्य मानवीकरण और पहाड़ का बांझपन बेहतरीन रचना .

virendra sharma ने कहा…

मनी ऑर्डर संस्कृति में पहाड़ की और वापसी .आ अब लौट चलें ....

Sunitamohan ने कहा…

aap yahan ki prishtbhoomi se avgat hain veeruG, ye jaankar achchha laga.....! pahdon ko insaanon ki darkaar hai aur pahadi majboor hai pahaad chhodne ke liye kyonki vahan jitni mehnat aadmi karta hai, aarthik roop se utna paata nahi hai, aur fir Bazaarvaad ne laalsaayen badha dee hain......kaise lauten apne pahaad?????????

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दिल कों छू गई आपकी पोस्ट ... हृदय्स्पर्शीय ...

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

lajbab prastuti abhar ke sath amanran bhi Sunita ji

Amrita Tanmay ने कहा…

ह्रदय पर दस्तक सी देती हुई...

Saras ने कहा…

वाह सुनीताजी इतने कम शब्दों में आपने नैसर्गिक सौंदर्य के साथ उसकी व्यथा को भी अपने शब्दों में निचोड़ कर रख दिया .....बहुत सुन्दर लगा आपका लेखन !

virendra sharma ने कहा…

वह जर्जर होते खिड़की दरवाजों से लिपट कर रोना चाहता था यह बताना चाहता था अब तुम अकेले नहीं हो मैं आ गया हूँ .आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .

कृपया यहाँ भी पधारें
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
सावधान !आगे ख़तरा है
सावधान !आगे ख़तरा है
http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012

परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब

http://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012

महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला

http://veerubhai1947.blogspot.in/
शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण

http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/शुक्रिया .
आरोग्य की खिड़की

http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

Anupama Tripathi ने कहा…

कोमल एह्सास ....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..

Anupama Tripathi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
sm ने कहा…

बहुत सुंदर
हृदयस्पर्शी पोस्ट