मंगलवार, 6 मार्च 2012

लोकतंत्र लौट आया है

उसकी आँखों में चमक है
कि अबके खूब लहलहाएगी फसल
उसके खेत में
कि उसे आश्वासन मिला है
बादल से
खूब बरसने का
सूरज से
धूप खिलखिलाने का
फिजाओं से
खुशहाली लाने का
कि अबके फिर लौटा है
लोकतंत्र
उसके द्वार पर
उसकी आँखों में सपने हैं
कि अब  जीवन संवरेगा
उसके बच्चे का
कि वो भी तारतम्य बैठा पायेगा
आधुनिक  युग के साथ
कि उसे आश्वासन मिला है
धरती के देवताओं से
टैबलेट, लैपटॉप और
मुफ्त पढाई का
कि अबके फिर लौटा है
लोकतंत्र
उसके द्वार पर
उसकी आँखों की  गहराइयों में बसी
सदियों की  पीड़ा से  सराबोर नमी
आश्वस्त है
कि हमे ही धोना है आखिर
एहसास
उसकी आँखों के धुंधलेपन का
कि अबके फिर लौटा है
लोकतंत्र
उसके द्वार पर
हर बार कि तरह ही !        

6 टिप्‍पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

अच्छी कविता है। बधाई।

कविता रावत ने कहा…

उसकी आँखों के धुंधलेपन का
कि अबके फिर लौटा है
लोकतंत्र
उसके द्वार पर
हर बार कि तरह ही !
..sach har baar gareeb ka sapna sapna hi bana rah jaata hai..
bahut marmsparshi rachna...

आशा बिष्ट ने कहा…

BEHTREEN ABHIVYAKTI

Nityanand Gayen ने कहा…

लोकत्रंत्र के नाम पर
मिला सिर्फ संविधान
न मिला ...
इंसाफ ..न्याय , सम्मान
और जीने का अधिकार ......

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर जज्बातोँ से भरी सुन्दर कविता।

Madan Mohan Saxena ने कहा…

वाह .बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.