शनिवार, 29 अगस्त 2020

 

इकिगाई:
क्या मुझे मालूम है कि मेरा इकिगाई क्या है?
जवाब है नही, अभी तक तो शायद नही ही!
जब से इस किताब को पढ़ना शुरु किया और आज इस किताब को पूरा पढ़ लेने के बाद तक मै यही सोच रही हूँ, कि मैं नही जानती मेरा जीवन का वो उददेश्य क्या है, जिसे पाने के लिये मै सबसे ज्यादा उत्साही हूँ या जिसे पाने के लिये मै जो प्रयास करुँ वो मुझे सबसे ज्यादा आनंदित करें। यूँ तो मेरा हर दिन व्यस्तता के बीच गुजरता है, जिसमे से अक्सर मैं कुछ घन्टे व्यायाम करने, पौधों को छूने-निहारने-सहलाने, फिल्में देखने, अखबार पढ़ने, सहेलियों से गप्पाने और किताब पढ़ने जैसे अपने प्रिय शगलों के लिये निकालने की कोशिश करती हूँ, मुझे घूमने के भी खूब अवसर मिलते रहे हैं। अपने दफ्तर के काम को भी मै खूब आनन्द के साथ करने की कोशिश करती हूँ, जितना challanging काम आता है, मै उतनी ही ऊर्जित हो जाना चाहती हूँ। ज़रूरत के समय मै अपने सिर पर स्नेह प्रेम और आशीष की छांव भी पाती रही हूँ। मेरे कुछ सपने कुछ ख्वाहिशें अभी बाकि भी हैं, जिन्हे मै पूरा करना चाहती हूँ।
कुल मिलाकर, अपने इकिगाई को पाने के रास्ते मे पड़ने वाले उन सब milestones, जिनकी तरफ ये किताब इशारा करती है, की थोड़ी बहुत उपस्थिति मेरे जीवन मे है, लेकिन मै संतुष्ट नही हूँ, और सन्तोष का वो पड़ाव ही इस किताब की आखिरी मंजिल है, जो मुझे ढूँढना है! एक कसमसाहट जो बनी रहती है, कि सिर्फ ये ही तो मुझे नही करना था! समाज को कुछ भी न लौटा पाने का मलाल जो मेरे इन्द्रधनुष के से आसमान का रंग फीका कर देता है, उस अपूर्णता से पार पाने की संभावनाओं को अपने आज मे खोजना है, वही तो होगा, मेरा इकिगाई!
हेक्टर गार्सिया और फ्रांसिस मिरेलस ने ये किताब लिखी है। इकिगाई एक जापानी संकल्पना है, जिसका अर्थ चंद शब्दों मे नही बताया जा सकता लेकिन, कह सकते हैं कि जीवन को आनंद और सन्तोष के साथ जीने के लिये एक अच्छा मकसद ही आपका इकिगाई है। इसमे समाज की चिंता को शामिल किया गया है, victor फ्रांकल जिन्होने नाजियोँ की बर्बरता को सहकर भी अपना इकिगाई पाया और logo therapy विकसित की, जिसने हजारों लोगों को नया जीवन दिया, की theory को विस्तार से बताया है। इस किताब ने मुझे rejuvenate किया है, ये उन सभी किताबों से अलग है, जिन्हे कुछ लोग motivational book के नाम पर बस अलग रैपर मे परोस देते हैं।
पहले ही मुझे जापानी trends आकर्षित करते हैं, इस किताब ने तो मेरे उन आग्रहों को जड़ें ही दे दीं हैं। 😄

(this book reminds me of movie by akira kurosawa, village of the watermills.)


 

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