सोमवार, 23 सितंबर 2019


मसूरीः पहाड़ों पर टिका तारों भरा आसमान

 अपने टैरेस से मसूरी को लगभग हर रोज़ देखती हूँ। जैसे जैसे रात साँझ को सोखने लगती है, वैसे वैसे ये शहर  और ज़्यादा टिमटिमाने लगता है, घुप्प अंधेरे में और नज़दीक दिखने लगता है। लगता है जैसे तारों भरा आसमान फिसलता हुआ, सामने की पहाड़ी पर टिक गया होे।  मेरे लिए ये शहर हमेशा एक नई दुल्हन सरीख़ा आकर्षक रहा है, इसकी खूबसूरती अप्रतिम है। बारिश के बाद जब मौसम में बादलों का कोई अंश नहीं बचता, धूल ज़मींदोज़ हो जाती है, तब मसूरी सिर्फ एक टूरिस्ट स्पाॅट भर नहीं रहता, तब मसूरी तरंगित हो उठता है, तब उसे देखना एक पुराने गीत को सुनने जैसा नौस्टाल्ज़िया बन जाता है। देहरादून से मसूरी तक का सर्पीला रास्ता भी बड़ा ही रोमांचक है। जिस देहरादून को हम पीछे छोड़ आते हैं, वो अगले ही पल सड़क के एक ओर नीचे बिछा हुआ दिखने लगता है। रात में तो ये नज़ारा ठीक दिवाली का एहसास कराता है, एक बड़ा सा थाल, दियों भरा!  इस लुत्फ़ को उठाने के बहाने से न जाने कितने ‘व्यू प्वांइट’ की दुकानें चल पड़ी हैं इस रास्ते पर। पिछले कई सालों से मसूरी जाने के बहुत मौके मिल रहे हैं, इतने कि, वहां की सड़कें, गलियां, दुकानें सब आँखों में बस गये हैं। मैगी, उबला अंडा, आमलेट, भुनी मक्की, मोमोज, गर्म कढ़ाई वाला दूध, काॅफी और पान ये सब वो चीजे़ हैं, जिन्हें खाने का मज़ा मानो मसूरी में ही है। इस पहाड़ी शहर के दूसरे हिस्से जैसे कैमल बैक रोड़, हाथी पांव, कम्पनी गार्डन, गन हिल पाॅईंट या दूसरी नामचीन जगहों को देखने का कोई लालच मन में रहता ही नहीं, मेरे लिए पूरा का पूरा मसूरी माॅल रोड में ही बसा है। 

इस बार भी शाम को यूं ही चल दिए थे हम मसूरी को महसूस करने। लगभग सात बजे मसूरी पहुँचे थे। वहां पहुंचते ही सर्द हवा ने सिहरन पैदा कर दी, लेकिन उस ठण्डी हवा में कोहरे की वो खुशबू घुली थी जो दूर हमारे गाँव की आबोहवा में बसी होती है, और इस तरह मसूरी में मैने अपना गाँव भी महसूस किया। स्ट्रीट फूड्स की महक से बहकती सड़कें, दुकानों की चकाचौंध, पर्यटकों की आवाजाही, मसूरी का मिज़ा, सब कुछ खुशनुमा लग रहा था। इस बार तो 9 डी शो का भी मज़ा लिया हमने मसूरी में, पांच मिनट के वो वर्चुअल इफैक्ट्स जो आपको दूसरी ही दुनिया में ले जाते हैं, कमाल लगा। इधर मन दौड़ रहा था, उधर घड़ी की सुईंया। गहराते अँधेरे के साथ धीरे- धीरे सड़कों पर सन्नाटा छाने लगा, होटलों के कमरों की बत्तियां बुझने लगी, सड़क किनारे लगे शामियाने सिमटने लगे, लग रहा था जैसे सड़कों की चौड़ाई भी यकायक बढ़ गयी है! और फिर इस मदमस्त खामोशी को अपने खीसों में भरकर, हमने मसूरी को अलविदा कह दिया, रात के लगभग दस बज चुके थे।

अब अगली दफा, विंटर लाईन से मिलने ..................., आप भी चलेंगे, मसूरी?



7 टिप्‍पणियां:

vinita ने कहा…

मसूरी रात्रि का सटीक चित्रण| सच में लगता है जैसे पूरी मसूरी माल रोड में ही सिमटी हुई है| विंटर लाइन देखने की वर्षों से दबी हुई इच्छा,लगता है इस बार पूरी होने वाली है|

Sunitamohan ने कहा…

ज़रूर, जाना ही चाहिए।
हमने पिछले कुछ सालों से विंटर लाइन को मिस नहीं किया है।
साथ में चलेंगे ��

प्रदीप बहुगुणा दर्पण ने कहा…

बहुत खूबसूरत सजीव वर्णन। साधुवाद...

Sunitamohan ने कहा…

धन्यवाद भैया।
आपकी रचना का भी इंतेज़ार है, बहुत समय हुआ।

Unknown ने कहा…

Kya baat h.masuri gayi to kai baar .but itna sunder chitran itni najdiki se nahi dekha.ab to man 10 din la rehne ka karta h.kh7bsurat alfaaz

Unknown ने कहा…

Kya baat h.masuri gayi to kai baar .but itna sunder chitran itni najdiki se nahi dekha.ab to man 10 din la rehne ka karta h.kh7bsurat alfaaz

Sunitamohan ने कहा…

dhanyawad. kh7bsurat alfaaz!