बुधवार, 10 अप्रैल 2013

ऐ मेरे मन


ऐ मेरे मन
तुम्हे ऐतराज तो होगा
जो मैं कहूँ कि
तुम मेरे लायक नहीं या मैं तुम्हारे
कि तुम मैले, कलुषित और भौंडे हो चले हो
तुम रचते हो साजिश मेरे प्रेम के ख़िलाफ़
जब टूटते हैं मिथक
तो मनाने लगते हो मुझे
और मान ही जाती हूँ मैं
कि मन आखिर मेरा ही तो है
मगर तुम मेरे कहाँ हो, मन ?
होते तो, मुझे अन्तर्द्वन्द की भेंट न चढाते
मैं तुम्हारे अधीन जब-तब हो जाती हूँ
तुम हो कि मेरे वश में कभी नहीं आते
तुम मेरे भीतर कहीं हो, जो बरगलाते हो मुझे
मगर तुम्हारे भीतर कौन है
जो बोता  है तुममे अविश्वास , धोखे और घृणा के बीज
आज साफ़ करो सारी  बातें
या छोड़ दो मेरा पीछा और करने दो मुझे
दो बातें अपने प्रियतम से!

17 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

वो कहते हैं न मन के हारे हार है मन के जीते जीत ..... बस मन बस में रहे तो फिर कोई द्वंध नहीं ..
बहुत बढ़िया प्रस्तुति

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

मन की मनमानी आखिर कब तक.....???
सुन्दर भाव..

अनु
pls remove word verification.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हूँ...मन को भी कभी खरी खरी कही जाये :)

Satish Saxena ने कहा…

यह द्वन्द चलता रहेगा ...
मन ही तो है :))

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है ... ये मन का द्वंद ही है ... जो डराता है ... ऐसा होगा तो ये न हो जाए ... ये होगा तो ऐसा न हो जाए ...
मन से परे ... मन की बात कहती सुन्दर रचना ...

virendra sharma ने कहा…

मन को अ -मन कर दो अमनीकरण कर दो मन का .शून्य में लगा दो .जैसे नमक पानी में विलीन होकर नमकीन हो जाता है नमक के गुण ले लेता है .वैसे ही मन को शून्य में विलीन कर दो .

Amrita Tanmay ने कहा…

मन तो ऐसा ही है.. मनभावन अभिव्यक्ति..

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सुन्दर सार्थक‍ अभिव्यक्ति.

Saras ने कहा…

सुनिताजी कितना सुन्दर लिखा है आपने ....वाकई यह मन अपना होकर भी अपना नहीं .....क्योंकि यह दिलसे कोसों दूर है .....हर कोमल अहसास में एक पैबंद लगा देता है ..और कलुषित कर देता है उसे...

Saras ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
vikram7 ने कहा…

Very nice.congrats

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बहुत अच्छे | बधाई

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

virendra sharma ने कहा…

जो जो मेरा मन कहे (मन मत )पे चलना और श्री मत पे चलना भिन्न है .श्री मत परमात्मा का डायरकशन निर्देशन हैं .उसपे चलने में फायदा है .ॐ शान्ति .

Jyoti khare ने कहा…

मन का प्रेम--- प्रेम में मन
प्रेम का मन से किया किया गया महीन अहसास
सहज पर गहन अनुभूति
सुंदर रचना
बधाई

आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

virendra sharma ने कहा…


बहुत खूब .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .मन की परतें ही कुछ उलझी सी हैं .

बेनामी ने कहा…

मन के द्वन्द को चित्रित करते-करते समापन "लाजवाब" लगा - बहुत खूब

Saras ने कहा…

मन की थाह पा पाना बहुत मुश्किल है सुनिताजी...बहोत शातिर होता है ...साफ़ निकल जाता है ...