दर्द-ओ-ग़म जो भुला दे
वो हंसी ही है
वो हंसी ही है
जो खजाना है ख़ुशी का
फैलती छूत सी जो
वो हंसी ही है
भूल जा दर्द दिल के
गा न अब ग़म के तराने
खोज ले आज
खिलखिलाने के बहाने
हम हँसे तो साथ में जो भी हो
वो भी हंसेगा
और हंसी का कारवां
बढ़ता रहेगा
हैं हंसी में खुशबुएँ गुलशन की सारी
है हंसी में स्वाद सारे व्यंजनों का
इक हंसी जो मुफ्त में मिलती है हमको
काट सकती है ये सारे रोग तन के
ज़िन्दगी जितनी भी हो
वो कम ही कम है
इसलिए
दो-चार दिन हंस ले हंसा ले !!!!!
शनिवार, 4 फ़रवरी 2012
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें