गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

ख्वाहिशें

हैं ख्वाहिशें ऐसी की जिनको
चाहना फ़िज़ूल है
बस इसलिए तेरे नाम से
इक मौत ही मक़बूल है
तू आके मेरी कब्र पे
दो फूल तो रख जायेगा
इस आस में हो दफ़्न
मिलना ख़ाक में भी क़ुबूल है...
                                 सुनीता मोहन  

 
  

 
  

कोई टिप्पणी नहीं: