गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

din vo bachpan ke

देख रसीले आम पेड़ पर
मन ही मन ललचाया
बहुत लगायी कूद मगर
मैं उन तक पहुँच न पाया
फिर मैंने कुछ कंकड़ खोजे
लगा निशाना फैंके
पर उनमे से एक भी कंकड़
आम को छू न पाया
खोजी एक लम्बी लाठी
लहराती बल खाती
कभी आम की डाल
तो कभी पत्तों में फंस जाती
पेड़ बहुत ऊँचा था
वर्ना पेड़ पे ही चढ़ जाता
कोशिश कर के भी देखी
पर चढ़ कर फिर गिर जाता
एक भी काम न आया 
अब तक जितने किये उपाय 
सोचा, चल नटवर अब 
अपने घर ही लौटा जाये
जैसे ही मैंने आँखों को
आमों से तनिक हटाया
टप्प से गिरा आप इक सर पर 
हाथ में मेरे आया
सच था? सपना था? जादू था?
मुझको समझ न आया
 बस मैं तो उस पके आम के
रस में डूब रहा था........!!!  
                               sunita mohan

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