शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

चार्ली चैप्लिनः श्री गीत चतुर्वेदी
संवाद प्रकाशन
‘चार्ली चैप्लिन’! दर्द, अभाव, प्रेम, घृणा, संघर्ष और सफलता के चरमोत्कर्ष को जीते हुए इंसान बने रहने की कहानी!

इस किताब को पढ़ने से पहले मैने शायद ही कभी चार्ली की कोई फिल्म पूरी देखी हो, हाँ उसके बाद जरूर देखीं। बहुत कम लोग होंगे जिनके लिए चार्ली चैप्लिन अनजाना चेहरा होगा। चार्ली का नाम सुनते ही उनका ब्लैक एण्ड व्हाईट पोस्टर मेरी आंखों में उतर आता है। हर दौर मेें प्रासंगिक रहे चार्ली के बारे में मुझे ज्यादा कुछ मालूम नहीं था, सिवाय इसके, कि वो महान एक्टर मूक हास्य फिल्मों का शहंशाह हुआ करता था जो अपनी माँ के बीमार हो जाने के चलते छोटी सी उम्र में ही पहली बार स्टेज पर आकर दर्शकों की तालियां बटोर ले गया और फिर कभी नहीं रूका। लेकिन गीत चतुर्वेदी जी ने अपनी इस किताब में चार्ली और उनके जीवन से जुड़े पहलुओं को इतने करीने से सिलसिलेवार पेश किया है कि, लगता है, हम चार्ली को काफी करीब से जानते हुए, उनके साथ उसी दौर को जी रहे हैं। किताब में, हर अगले कदम वो सारे संघर्ष टूटे काँच के टुकड़ों की तरह बिखरे पड़े मिलते हैं, जिन पर चलकर  चार्ली जख्मी तो हुए लेकिन खुद को टूटने नहीं दिया। किताब में उनकी फिल्मों के जिक्र और उन फिल्मों के बनने-बनाने के किस्से हैं, चार्ली की प्रेमाकांक्षाओं की कहानियाँ हैं।

इतिहास गवाह है कि, सत्ता अक्सर अपने मुखर आलोचक के प्रति अनुदार रही है, चाहे वह सत्ता लोकतन्त्र के जामे में ही क्यों न हो। वह हर उस कलाकार, जो सत्ता की बदनीयती को अपनी कला के माध्यम से सामने लाने की कोशिश करता है, को अपने बनाये कानूनी दांव-पेंचों में उलझा कर कमजोर करती है, वह अपने लोलुप प्रचार तंत्र की मदद से अविवेकी भीड़ का समूह तैयार करती है, जो उसकी पोषित अराजकता का समर्थन करता है। यहूदियों के समर्थन में दिए गये अपने स्टेटमेण्ट्स और द ग्रेट डिक्टेटर की स्पीच जैसी इन्कलाबी गतिविधियों के चलते, अमेरिका में वही दाँव चार्ली पर भी आजमाए गये थे। मीडिया आज भी वही भूमिका निभा रहा है, जो उस दौर में निभा रहा था। किताब से पता चलता है कि, चार्ली की सहानुभूति हर उस आदमी के साथ थी, जो सम्पन्नों का सताया था, यही कारण था कि, वे हिटलर की नीतियों के विरोधी थे और यहूदियों के लिए उनके मन में सहानुभूति थी, मीडिया ने उन्हें कम्यूनिस्ट कहना शुरू कर दिया तो अमेरिका की भीड़ ने उनका बायकाॅट करना! उन्होंने आजीवन अमेरिकी नागरिकता नहीं ली, वो खुद को विश्व नागरिक मानते थे।  

“आपने इस दुनिया को अकूत खुशियाँ और ढेर सारे ठहाके दिये, इसके बावजूद आपको रूखी और कृतघ्न अमेरिकी प्रेस को झेलना पड़ रहा है, एक कलाकार के रूप में आप क्या महसूस करते हैं, चार्ली?” कवि और पत्रकार जिम एजी के इस सवाल के उत्तर में चार्ली की आँखों में आँसू थे और अन्ततः उन्होने अमेरिका को अलविदा कह दिया । उन्होने स्विटज़रलैण्ड को अपना ठौर चुना।

चार्ली चैप्लिन ने सन् 1977, क्रिसमस डे के दिन आखिरी सांस ली, लेकिन सच तो ये है कि, चार्ली चैप्लिन मरा नहीं करते, वो हमेशा रहते हैं और दुनिया को ‘लायक’ बनाये रखने के लिए अपनी कला को साधन बनाते हैं।
शुक्रिया, श्री गीत चतुर्वेदी।
शुक्रिया संवाद प्रकाशन। 




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