एक लड़का था, श्यामल! यही कोई छः साल का, बहुत ही शैतान और नटखट.
एक दिन श्यामल के घर में एक नन्ही पारी आई, उसकी छोटी बहिन, बहुत ही सुन्दर बहुत ही प्यारी. श्यामल को वो गुडिया जैसी लग रही थी, इसलिए उसने इस नन्ही पारी का नाम रखा- 'बार्बी'. श्यामल के स्कूल में छुट्टियाँ पद गयी थीं और अब तो उसके घर में खेलने के लिए एक नयी चीज़ आ गयी थी, बार्बी! इसलिए वो ज्यादा समय घर में ही बिताता अपनी बहन के साथ, कभी उसके नर्म गुलाबी गाल सहलाता तो कभी उसकी मुलायम उँगलियाँ के साथ खेलता. जब कभी बार्बी बिस्तर गीला करती तो तुरंत अपनी माँ को आवाज़ लगा देता, वो बार्बी का बहुत ध्यान रखता था. श्यामल की माँ को लगा की अब मेरा बेटा काफी समझदार हो गया है. वो रोज़ सवेरे बार्बी को नहला-धुला कर घर के बाहर आँगन में धुप में लिटा देती और श्यामल को कहती की वो बार्बी के पास बैठा रहे और उसका ध्यान रखे.
एक दिन श्यामल ने देखा, बंदरों का एक झुण्ड उसके घर की छत पर उठा-पठक कर रहा है, श्यामल के नटखट दिमाग को न जाने क्या शरारत सूझी उसने बन्दर के झुण्ड में बैठे एक छोटे से बन्दर की तरफ पत्थर फेंक दिया. पत्थर सीधे उस छोटे बन्दर की आँख में लगा और वो छत से नीचे पड़े एक नुकीले पत्थर पर आ गिरा, देखते-ही-देखते बन्दर के सर से खून बहने लगा. सभी बन्दर इकट्ठे हो गए और उस बच्चे को अपने साथ ले गए. श्यामल इस पूरी घटना को देखकर अपने ऊपर बहुत शर्मिंदा hua. श्यामल ने अपनी माँ को साड़ी बात बतायी और रोने लगा. श्यामल की माँ को उसकी इस शरारत पर गुस्सा तो बहुत आया मगर श्यामल की आँखों में पश्चाताप के आंसू देखकर उसका मन पसीज गया और उसने श्यामल को प्यार से समझाया कि हमे कभी दूसरों को परेशान नहीं करना चाहिए, चाहे वह इंसान हो या जानवर.
कुछ दिनों के बाद, एक दिन जब रोज कि तरह श्यामल सुबह बार्बी के साथ धूप में बैठा था, बंदरों का एक बड़ा सा हुजूम आया और पल भर में उनमे से एक बन्दर ने बार्बी को बिस्तर से उठा लिया. बार्बी को अपने एक हाथ से दबोचे वो बन्दर तेजी से दौड़ने लगा और बाकी बन्दर उसके पीछे-पीछे दौड़ गए. श्यामल जोर से चिल्लाया, उसकी चीख सुनकर उसकी माँ भागकर बाहर आई और देखा कि बन्दर बार्बी को लेकर जंगल कि तरफ दौड़ रहे हैं. बार्बी बहुत चीख रही थी मगर बन्दर उसको दबोचे जंगल के अँधेरे में ग़ुम हो गए. गाँव के सारे लोग इकठ्ठा हुए और जंगल में बार्बी को खोजने लगे मगर पूरा दिन बीत गया बार्बी का कुछ पता नहीं चला. पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई लेकिन अँधेरा होने के कारण अब पुलिस भी कुछ नहीं कर सकती थी. श्यामल के पूरे परिवार में सब का रो-रो कर बुरा हाल था. श्यामल को लग रहा था कि ये सब उसके कारण हुआ है, बंदरों ने उस दिन का बदला लिया है. श्यामल रात भर भगवान् से प्रार्थना करता रहा कि अब वह कभी ऐसी हरकत नहीं करेगा, असहायों को नहीं सताएगा, बस एक बार उसकी बहिन मिल जाये.
अगले दिन उजाला होते ही पूरा गाँव पुलिस के साथ बच्ची को खोजने निकल पडा, श्यामल भी साथ में था, अचानक श्यामल ने एक बच्चे के हलके से रोने की आवाज़ सुनी, उसने अपनी माँ को उस तरफ चलने के लिए कहा, थोड़ी ही दूरी पर देखा तो एक बड़े से टीलेनुमा पत्थर के नीचे उसकी बहन रो रही थी. उसके नीचे घास की तह लगी थी, जिस पर वो आराम से लेटी थी, पर शायद वो भूखी थी. सब हैरान थे कि कैसे एक छोटी सी बच्ची जंगल में रात भर ओस में पडी जिंदा थी, वो भी एकदम स्वस्थ!! ये सबके लिए एक अजूबा था. गाँव के कुछ लोग तो इस घटना को दैवीय चमत्कार समझ कर घर में पूजा-पाठ कराने कि सलाह दे रहे the . मगर श्यामल जानता था कि सच क्या है और उसे अब क्या करना है, उसे अब उसे अपना वायदा निभाना था!
श्यामल आज बहुत बड़ा डॉक्टर है, जानवरों का डॉक्टर! हर रोज़ वह कई जानवरों का इलाज करता है, जिनमे कुछ पालतू होते हैं तो कुछ जंगली. श्यामल के क्लीनिक के बाहर एक बोर्ड लगा है, जिस पर एक प्रसिद्द स्लोगन लिखा है......
"animals have the same rights as a retarded human child because they are equal mentally in terms of dependence on others "