बुधवार, 10 अप्रैल 2013

ऐ मेरे मन


ऐ मेरे मन
तुम्हे ऐतराज तो होगा
जो मैं कहूँ कि
तुम मेरे लायक नहीं या मैं तुम्हारे
कि तुम मैले, कलुषित और भौंडे हो चले हो
तुम रचते हो साजिश मेरे प्रेम के ख़िलाफ़
जब टूटते हैं मिथक
तो मनाने लगते हो मुझे
और मान ही जाती हूँ मैं
कि मन आखिर मेरा ही तो है
मगर तुम मेरे कहाँ हो, मन ?
होते तो, मुझे अन्तर्द्वन्द की भेंट न चढाते
मैं तुम्हारे अधीन जब-तब हो जाती हूँ
तुम हो कि मेरे वश में कभी नहीं आते
तुम मेरे भीतर कहीं हो, जो बरगलाते हो मुझे
मगर तुम्हारे भीतर कौन है
जो बोता  है तुममे अविश्वास , धोखे और घृणा के बीज
आज साफ़ करो सारी  बातें
या छोड़ दो मेरा पीछा और करने दो मुझे
दो बातें अपने प्रियतम से!