शुक्रवार, 22 मार्च 2013

फिर से ………!

माँ मुझे ढूंढ़ रही है पागलों की तरह
वो नहीं  जानती पिछली रात
मै गहरी नींद में थी जब
मुझे सहलाते हुए उसे नींद ने कब जकड़ा
वो भी न जान सकी
मुझे माँ से छुड़ाकर
उठा ले गया था वही
जो मुझे ढूंढने वालों की  जमात में
सबसे आगे है
एक अनजान अँधेरे कमरे के कोने में उसने मुझे पटका
मेरी आँख खुली
मै काँप रही थी-चिल्ला रही थी
उसके दांत मेरी  रूह को चबा रहे थे
मेरी तकलीफ से वो आह्लादित हो उठा था
फिर खुद को तृप्त कर
मुझे ख़त्म कर दिया उसने
कि कहीं मै उसके गुनाह का पर्दाफाश न कर दूँ
और इस तरह
डेढ़ बरस का 'स्त्रीत्व'
मिट्टी की तहों में
जज़्ब हो गया फिर से ………!